Tuesday, May 14, 2024
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मन्नू भंडारी के कई रंग

8 कहानियों और आपका बंटी को आपस में मिलाकर एक नाटक में कही गई मन्नू की बेटियों की कहांनी
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स्त्री विमर्श की जमीन तैयार की मन्नू भंडारी ने
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नाटक में मन्नू जी के किरदारों ने किए उनसे भी सवाल

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नई दिल्ली । हिंदी के चर्चित कथाकार एवं पत्रकार प्रियदर्शन ने प्रख्यात लेखिका मन्नू भंडारी के बहुचर्चित उपन्यास “आपका बंटी” और उनकी आठ कहानियों को मिलाकर एक ऐसा नाटक तैयार किया जो हिंदी रंगमंच के इतिहास में सर्वथा एक अनूठा प्रयोग है।
इससे पहले हिंदी रंगमंच में किसी लेखक की कई कहानियों और रचनाओं को आपस में गूंथकर एक स्वतंत्र नाटक तैयार नहीं किया गया था लेकिन प्रियदर्शन ने” मन्नू की बेटियां” नाटक में यह नया प्रयोग कर दर्शकों का दिल जीत लिया।
राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय के सम्मुख सभागार में एनएसडी के पूर्व निदेशक एवं प्रख्यात रंगकर्मी देवेंद्र राज अंकुर के निर्देशन में खेला गया यह नाटक इतना सफल रहा कि लोग नीचे बैठकर भी नाटक देखते रहे और उसे देखकर मंत्र मुग्ध हो गए ।
समारोह के अंत में श्री अंकुर ने दर्शकों को बताया कि मन्नू भंडारी की 9 रचनाओं को मिलाकर यह नाटक तैयार किया गया है।इससे पहले भी वह मन्नू जी की कहानियों औरउनके प्रसिद्ध उपन्यास ” महाभोज” का मंचन कर चुके हैं।
प्रियदर्शन के अनुसार मन्नू भंडारी के उपन्यास “आपकी बंटी ” के एक अंश के अलावा उनकी 8 कहानियों को मिलाकर यह नाटक तैयार किया गया ।इसमें मन्नू जी के किरदार भी लेखिका से सवाल करते हैं कि उन्हें ऐसा क्यों रचा गया।
“आपका बंटी “की नायिका शकुन और उसके बेटे के आपसी संवादों के जरिए यह नाटक शुरू होता है जिसमें बंटी अपनी मां से सवाल करता है कि उसे दूसरे पिता के हाथों क्यों परवरिश करने दिया गया ।मां और बेटे का संवाद बहुत दिलचस्प है और उतार चढ़ाव लिए हुए है तथा एक विडंबना पूर्ण स्तिथि का बयान करता है। इस उपन्यास के किरदार फिर दूसरी कहानियों में प्रवेश कर नए किरदार बन जाते हैं और इस तरह यह नाटक विकसित होता है। उसमें मंन्नू जी की कहांनी ” जीत का चुंबन” यही सच है, “एक कमजोर लड़की की कहानी”, “नई नौकरी ” स्त्री बोधिनी और अभिनेता तथा ” दीवार” कहानी के माध्यम से यह नाटक आगे बढ़ता है और एक तरह से एक स्वतंत्र रचना का आकार ग्रहण कर लेता है।
प्रियदर्शन ने मन्नू भंडारी की रचनाओं को आपस में इस तरह गूंथ कर यह नाटक तैयार किया है कि लगता ही नहीं है कि इस नाटक में कहानियों को मिलाया गया है बल्कि वह एक नई कहानी बन जाती है । इस नाटक की खूबी यह भी है कि इसमें कहानियों के पात्र रचनाकार से भी सवाल पूछते हैं और कहते हैं कि तुमने मुझे इस तरह क्यों ऐसा बनाया है जबकि दूसरे किरदारों को अलग क्यों बनाया।मैं इस तरह किरदार में नहीं बनना चाहती थी ।
इस नाटक में मुख्य अभिनेता अमित सक्सेना ,अदिति , गौरी और तूलिका ने अपने सुंदर अभिनय से इस नाटक में जान डाल दी और “मन्नू की बेटियों “का संदेश दिया सीधे दर्शकों के दिल में उतर जाता है।
इस नाटक में मन्नू भंडारी की विभिन्न कहानियां के कई रंग दिखाई दिए और नाटककार ने यह बताने का प्रयास किया कि मन्नू भंडारी का कोई एक रंग नहीं था बल्कि वह कई रंगों वाली लेखिका थी और उन सभी रंगों को मिलकर ही उनका सम्यक मूल्यांकन किया जा सकता है।दरअसल इस नाटक ने मंन्नू जी की कहानियों को समझने के सूत्र भी दिए है ।
श्री अंकुर ने इस नाटक के मंचन में कुछ नए तरह के प्रयोग भी किया और केवल महज़ चार कलाकारों के जरिए इस नाटक को आपस में मिलाकर कर एक नई रचना का निर्माण किया और सारे पात्र एक ही किरदार के अलग-अलग संस्करण दिखाई दिए।
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इससे पहले मन्नू भंडारी की रचनाशीलता पर एक विचारोत्तेजक गोष्टी भी हुई जिसमें हिंदी की वरिष्ठ लेखिका मधु कांकरिया , कथाकार आलोचक विवेक मिश्रा ,युवा लेखिका प्रकृति करगेती ने भाग लिया जबकि मंच का कुशल संचालन चर्चित कवयित्री रश्मि भारद्वाज ने किया ।गोष्टि के बाद श्रोताओं और वक्ताओं के बीच सवाल जवाब भी हुए जिससे ममता कालिया मृदुला गर्ग आकांक्षा पारे नीला प्रसाद आदि ने कई प्रश्न पूछे ।इससे अच्छी खासी बहस भी हुई ।सभी लोगों ने मन्नू भंडारी को अपनी अपनी दृष्टि से परिभाषित करने की कोशिश की।

रश्मि भारद्वाज ने गोष्ठी की शुरुआत करते हुए मंन्नू भंडारी को स्त्री वाद के नजरिये से देखने का प्रयास करते हु
हुए आपका बंटी की माँ ” शकुन” को विद्रोह की बात की ।उनक़ा मानना था कि मन्नू जी ने साहसिक स्त्री पात्रों का निर्माण किया है भले ही वह प्रेम विवाह और मातृत्व के त्रिकोण में फंसी हों पर वह अपना रास्ता चुनती हैं।

प्रकृति ने मंन्नू भंडारी के किरदारों को सहज सरल बताया और मन्नू जी को उधृत किया कि उन्होंने जैसा देखा वैसा ही लिखा और उन्हें किसी विचारधारा से नहीं गढ़ा ।उन्होंने एक पुराने चर्चित गीत” लारा लप्पा लारा लप्पा “के हवाले से कहा कि जिस तरह गाने के अंत मे लड़कियां पुरुषों
की कुर्सियों पर कब्ज होने की बात कहते हैं इस तरह मन्नू भंडारी भी अपनी कहानियों में स्त्रियों के सशक्तिकरण की बात कहती हैं. उन्होंने मन्नू भंडारी की कहानियों में नैतिक आधार की भी बात की और उसके पीछे उसे दौर के समाज की मानसिकता को रेखांकित किया और कहा कि वह नैतिक आधार सभी मनुष्यों के लिए एक जैसा था ।
विवेक मिश्रा ने मन्नू भंडारी की कहानियों को उनके समय और समाज में पहचानने की जरूरत पर बल दिया और कहा कि यह वह दौर था जब न्यूक्लियर फैमिली बन रही थी स्त्रियों की नौकरियां शुरू हो रही थी ,एक तरफ पढ़ाई का भी बोझ था और घर चलाने की भी जिम्मेदारी भी थी । महानगर में स्त्री की आकांक्षा भी व्यक्त हो रही थी और करियर की भी जरूरत महसूस हो रही थी।उन्होंने कहा कि मन्नूभंडारी ने स्त्री वाद का पौधा लगाया और जब कोई रास्ता न बना हो तो रास्ता शुरु करने का भी महत्व है। वह परंपरा से विद्रोह कर रही थी क्योंकि परंपरा और संस्कारों के नाम पर स्त्रियों को बहुत छला गया था।
उन्होंने रानी का चबूतरा कहांनी का जिक्र करते हुए गुलाबों जैसी गरीब महिला के संघर्ष को रेखांकित किया जिसने शराबी पति को घर से निकाल दिया था और खुद बच्चे को पाल रही थी।

उन्होंने स्त्री सुबोधिनी कहांनी के पात्र को रेट्रोग्रेसीव बताया जिस पर विवाद हुआ ।मृदुला गर्ग और नीला प्रसाद जैसे लोगों का कहना था कि वह एक व्यंग्यात्मक कहांनी है इसलिए उसके व्यंग्य को समझने की जरूरत है।


मधु कांकरिया ने मंन्नू जी को अपनी मां की रिश्ते में दूर की बहन बताते हुए कहा कि मंन्नू जी की कहानियां जीवन के ताप से तपी हुई कहानियां थीं।साठ के दशक में बदलती हुई स्त्री की कहानी थी।उन्होंनेमहाभोज को एक स्त्री द्वाराहिंदी में पहला राजनीतिक
उपन्यास लिखने की बात कही ।

उन्होंने बताया कि एक स्त्री बिना पिता पति और प्रेमी या पुत्र के संरक्षण के भी जी सकती है।वह रेडिकल फेमिनिज्म की लेखिका नहीं पर वह परंपरा और धर्मिक कर्मकांड की विरोधी हैं।उनके भीतर प्रेमचन्द का आदर्श और जैनेंद्र का मनोविज्ञान भी है।

ममता कालिया ने सवाल उठाते हुए कहा कि मंन्नू जी ने ऊंचाई कहांनी में सेक्स के टैबू को भी तोड़ा लेकिन इशारों में बात कही।उनक़ा सेंस ऑफ ह्यूमर भी जबरदस्त था।उन्हें 21 वीं सदी की लेखिका के रूप में मत देखिये।

आकांक्षा पारे ने सवाल किया कि मन्नू जी को नई कहानी की त्रयी में क्यों नहीं शामिल किया गया।राजेन्द्र यादव मोहन राकेश और कमलेश्वेर को त्रयी माना गया जबकि मोहन राकेश कमलेश्वेर और मंन्नू भंडारी की त्रयी होने चाहिए।इस पर लोगों नेजमकर तालियाँ पिटी ।

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