Friday, November 22, 2024
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आर्मेनियाई जनसंहारः ऑटोमन साम्राज्य का कलंक का लोकार्पण

कवि सुमन केशरी एवं माने मकर्तच्यान द्वारा संपादित पुस्तक, “आर्मेनियाई जनसंहारः आटोमन साम्राज्य का कलंक” का आर्मेनियाई जनसंहार दिवस – 24 अप्रैल को दिल्ली में आर्मेनियाई दूतावास व राजकमल प्रकाशन द्वारा आयोजित एक समारोह में लोकार्पण हो गया। इस 24 अप्रैल को आर्मेनियाई जनसंहार के 107 वर्ष पूरे हो गए। इस अवसर पर बोलते हुए श्री अशोक वाजपेयी ने कहा कि अब वक्त आ गया है कि भारत इस जनसंहार को विधिवत् मान्यता प्रदान करे। ज्ञात हो कि अब तक इस जनसंहार को चालीस से भी कम देशों ने मान्यता दी है, जिनमें भारत का नाम नहीं है। तुर्की ने भी ऑटोमन साम्राज्य द्वारा नियोजित इस जनसंहार को स्वीकार नहीं किया है।

भारत में आर्मेनिया गणतंत्र के राजदूत महामहिम यूरी बाबाखान्यान ने बहुत जोर देकर कहा कि हम किसी के विरुद्ध नहीं हैं, बस यह चाहते हैं कि यह मान लिया जाए कि 1915 से 1923 तक आर्मेनियाईयों का संहार गलत था! उन्होंने पुस्तक का स्वागत करते हुए कहा कि यह निश्चित ही लोगों में आर्मेनियाई जनसंहार के प्रति जागरुकता पैदा करेगी और आर्मेनियाई साहित्य के प्रति रुचि भी।

दोनों संपादकों के लिए यह अवसर अपने परिश्रम को फलीभूत होते देखने का अप्रतिम अवसर था, जिसे शब्द दिए प्रो. अर्चना उपाध्याय ने। उन्होंने कहा कि यह किताब आर्मेनिया को जानने समझने के लिए संदर्भ पुस्तक है। वे अपने विद्यार्थियों को इस पुस्तक को पढ़ने के लिए प्रेरित करेंगी। कार्यक्रम का संचालन सुदक्ष सोती ने किया। कार्यक्रम की शुरुआत में हिंसा में मारे गए लोगों के लिए मौन धारण किया गया।

अशोक वाजपेयी जी ने इस पुस्तक में संकलित कविताओं के अंश भी पढ़े। उनके पाठ से लगा कि सब सामने दृश्यमान है।राजकमल प्रकाशन के प्रबंध निदेशक अशोक महेश्वरी जी ने पुस्तक के ऐतिहासिक महत्त्व को रेखांकित करते हुए राजकमल प्रकाशन की पक्षधरता को रेखांकित किया।
https://youtube.com/shorts/c_yd00_NXGI?feature=share
इस पावन अवसर पर आर्मेनियाई सरकार ने इस काम के महत्त्व को सम्मानित करने के लिए पुस्तक के दोनों संपादकों- सुमन केशरी एवं माने मकर्तच्यान को, आर्मेनिया के शिक्षा, विज्ञान व खेलकूद मंत्रालय का उच्चतम सम्मान- स्वर्ण पदक से नवाजा! दोनों ही संपादकों को महामहिम राजदूत महोदय ने अपने हाथ से पदक, सर्टिफिकेट और फूल प्रदान किए तो हॉल तालियों की गड़गड़ाहट से गूंज गया।
सभी मौजूद लोगों के मन में यही विनती फूटी- इस जगत से हिंसा समाप्त हो.. करुणा और विवेक का प्रसार हो!

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