आज की नई पीढ़ी भारत भूषण अग्रवाल स्मृति पुरस्कार के बारे में तो बखूबी जानती है और इस पुरस्कार समारोह में भाग लेती भी रही है।गत 43 वर्षों से यह पुरस्कार दिया जाता रहा लेकिन दिल्ली में बिंदु अग्रवाल की स्मृति में भी एक समारोह पिछले बीस सालों से आयोजित किया जाता रहा है जिसके बारे में अधिकतर लोग अनजान हैं क्योंकि इस समारोह की कहीं चर्चा होती नहीं है जबकि इस समारोह में निर्मल वर्मा नामवर सिंह केदारनाथ सिंह विष्णु खरे रविंद्र कालिया ममता कालिया अशोक बाजपेई जैसे लोग भाग लेते रहे हैं और यह समारोह लेडी श्रीराम कॉलेज में होता रहा है।
पिछले बीस सालों में बिंदु जी की स्मृति में एक छात्रवृत्ति भी दी जाती रही है और अब तक करीब 60 छात्राओं को यह छात्रवृत्ति दी गई है। इस छात्रवृत्ति के शुरू होने का भी किस्सा बड़ा मार्मिक है। बिंदु जी की दूसरी पुत्री अर्पिता जो एक संवेदनशील कवयित्री भी थी और उनका एक कविता संग्रह भी 21 वर्ष की उम्र में छपा था लेकिन वह कैंसर की मरीज होने के कारण सन 2000 के आसपास इस दुनिया से विदा हो गई लेकिन उन्होंने अपने निधन से पहले अपनी मां के लिए एक यादगार तोहफा दिया।उन्होंने अपनी ओर से धन मुहैया कराकर अपनी मां की स्मृति में लेडी श्रीराम कॉलेज में एक छात्रवृत्ति भी शुरू की। तब बिंदु जी जीवित भी थी और जो पहला कार्यक्रम हुआ था उसमें बिंदु जी भी मौजूद थी लेकिन बादमे बिंदु जी नहीं रही और उनकी पुत्री अर्पिता भी नहीं रही।
हिंदी की दुनिया में एक बेटी ने अपनी मां की स्मृति में एक अनोखा कार्य किया जिसके बारे में बहुत कम लोग जानते हैं ।बिंदु जी की दूसरी पुत्री अन्विता अब्बी ने ,जो दुनिया की जानी-मानी भाषा विद हैं और जिन्होंने अंडमान निकोबार की लुप्त होती भाषाओं पर अंतरराष्ट्रीय स्तर का शोध कार्य किया है, आज लेडी श्रीराम कॉलेज में आयोजित समारोह में बताया कि किस तरह उनकी मां का विवाह 14- 15 वर्ष की उम्र में हुआ था और वह तब आठवीं पास थी लेकिन उनके अंदर पढ़ने की गहरी ललक थी. इस ललक का नतीजा था कि उन्होंने एक अमीर व्यापारी की बजाए एक कवि से शादी करना मुनासिब समझा और भारत जी ने उन्हें खूब पढ़ाया।बिंदु जी ने काशी विश्वविद्यालय से एम ए करने के बाद इलाहाबाद यूनिवर्सिटी से पीएचडी की ।उन्होंने 1960 में हिंदी उपन्यासों में नारी चित्रण पर शोध किया। तब इस स्त्री विमर्श का शोर-शराबा नहीं था और जेंडर स्टडीज विभाग खुला नहीं था लेकिन बिंदु जी ने धीरेंद्र वर्मा लक्ष्मी शंकर वार्ष्णेय जैसे निरीक्षकों के निर्देशन में यह पीएचडी की। पीएचडी करने के बाद वह लेडी श्रीराम कॉलेज में हिंदी की लेक्चर बनी। उस जमाने में उषा प्रियम्बदा जी उस कॉलेज में अंग्रेजी की लेक्चरर बनी थी तथा निर्मला जैन ने भी अपने करियर की शुरुआत उसी कॉलेज से की थी और वह उस कॉलेज में विभागाध्यक्ष भी रही जहां बिंदुजी बाद में विभागाध्यक्ष बनी। बिंदु अग्रवाल भारतभूषण अग्रवाल की केवल पत्नी नहीं थी बल्कि वह पर्दे के पीछे रहने वाली साधक थी जैसे देवी शंकर अवस्थी की पत्नी कमलेश अवस्थी ने अपनी पति की समस्त रचनाओं का उनके निधन के बाद संपादन किया और रचनावली निकाली उसी तरह बिंदु अग्रवाल ने भी अपनी पति के निधन के बाद उनकी रचनावली निकाली बल्कि उनके पत्रों का संग्रह तैयार किया और उन पर लिखे गए संस्मरणों की एक पुस्तक भी निकाली ।इस तरह बिंदु जीने अपने पति के लिए काफी कुछ किया जिसकी चर्चा हिंदी साहित्य में बहुत कम होती है। उनकी पुत्री अन्विता अब्बी ने समारोह में विस्तार से अपनी मां के इस योगदान के बारे में प्रकाश डाला ।
एक साधक पत्नी की स्मृति में एक यादगार समारोह मेमुझे भी बोलने का मौका मिला।