66 वर्षीय मधु जी कोकिसानों कीआत्महत्या पर केंद्रित उपन्यास “ढलती साँझ का सूरज” पर कल दिल्ली में एक समारोह में 11 लाख रुपए का सम्मान प्रदान किया गया ।वह यह सम्मान पाने वाली पहली हिंदी लेखिका हैं।
हिंदी के वयोवृद्ध आलोचक विश्वनाथ त्रिपाठी ने एक गरिमामय समारोह में उन्हें इस पुरस्कार से सम्मानित किया ।इस मौके पर मंच पर वरिष्ठ लेखिका मृदुला गर्ग प्रख्यात लेखक असगर वजाहत प्रियदर्शन रवींद्र त्रिपाठी आदि मौजूद थे ।
23मार्च 1957 को कोलकाता में जन्मी मधु जी ने अर्थशास्त्र में एमए किया और उनके अब तक आठ कहानी संग्रह 7 उपन्यास और पांच यात्रा वृतांत भी छप चुके हैं। उन्हें कई पुरस्कार और सम्मान पहले भी मिले हैं तथा उनकी एक रचना पर टेली सीरियल भी बन चुका है ।
मधु जी प्रतिबद्ध लेखन में यकीन करती हैं और साहित्य में वंचित समुदाय के लोगों की आवाज बन चुकी हैं। उनका हमेशा से जोर साहित्य को समावेशी बनाने पर रहा है।वे हाशिये पर रहने वाले लोगों के दुख दर्द को व्यक्त करती रहीं हैं।पिछले दिनों मुंबई में सुधा अरोड़ा ने मधु जी के लेखन पर प्रकाश डालते हुए कहा जिस तरह आज हम कहते हैं यह महाश्वेतादेवी साहित्य है उसी तरह भविष्य में एक दिन यह कहा जाएगा -यह मधु कांकरिया का साहित्य है ।
मधु कांकरिया के कहानी संग्रहों में कुछ चर्चित “और अंत मे यीशु “, बीतते हुए , “चिड़िया ऐसे मरती है “और भरी दोपहरी के अंधेरे “है। इसके अतिरिक्त इनके उपन्यास ‘खुले गगन के लाल सितारे , पत्ता खोर,” सलाम आखिरी” , “सेज पर संस्कृत “और “सूखते चिनार” हैं।
मधु कांकरिया के सामाजिक विमर्श अपनी धरती अपने लोग है। इसके अलावा इनके द्वारा रचित टेली फ़िल्म लेखन “रहना नही देश वीराना” है।
एक बार स्त्री दर्पण की ओर से मधु जी को बधाई।