Friday, November 22, 2024
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लेखकों की पत्नियों की श्रृंखला में आज पढ़िये हिंदी के प्रख्यात लेखक प्रयाग शुक्ल Prayag Shukla जी की पत्नी के बारे में प्रस्तुति निर्देश निधि Nirdesh Nidhi .

अब तक आपने आचार्य हजारीप्रसाद द्विवेदी जी की पत्नी भगवती जी, आचार्य रामचंद्र शुक्ल की पत्नी सावित्री देवी और आचार्य शिवपूजन सहाय की पत्नी बच्चन देवी के बारे में पढ़ा ।अब ज्योति शुक्ला के बारे में पढ़िए ।
“कैटेलिस्ट होती हैं पत्नियाँ”
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(प्रयाग शुक्ल जी की पत्नी श्रीमती ज्योति शुक्ल)
स्त्री अक्सर किसी की सफलता के पीछे का अंजाना सच रह जाती है। यह उस स्त्री के साथ अधिकांश होता है जो स्त्री पत्नी रूपा होती है। छह बहनों में से एक हैं वे। उनका पूरा नाम है ज्योति कौर अहलूवालिया। हममें से कुछ लोग उन्हें प्रयाग शुक्ल जी की पत्नी के रूप में ही जानते हैं और हममें से बहुत सारे किसी भी तरह नहीं ।
ज्योति कौर अहलूवालिया एक संपन्न परिवार की बेटी हैं, वे शुक्ल जी के जीवन में एक ऐसी ज्योति के रूप में आयी जिन्होंने उनके जीवन के हर कोने को ऊर्जा और उजास से भर दिया। अहलूवालिया नाम से ही विदित है कि वे एक पंजाबी सिख परिवार की बेटी हैं। उनकी बड़ी बहन रूबी अहलूवालिया ने बहुत प्यार से पाला – पोसा है उन्हें । रूबी अहलूवालिया कलकत्ता के एक प्रसिद्ध स्कूल शिक्षायतन की प्रिंसिपल और वार्डन रही। ज्योति जी को बहन रूबी ने ही पुस्तकों और कलाओं से परिचित कराया और उन्हें उन पुस्तकों की आत्मीय बनना सिखाया। प्रयाग शुक्ल जी ने अपनी किशोरावस्था से ही लेखन आरंभ कर दिया था। और जब 20 – 22 वर्ष की आयु में स्वतंत्र लेखन कर रहे थे , लगभग उसी समय ज्योति जी का उनसे मिलना भी एक संयोग ही था। शिक्षायतन (कलकत्ता) के जिस छात्रावास में ज्योति जी रह रही थी। वहीं प्रयाग शुक्ल जी की बहन भी कुछ दिनों के लिए रह रही थीं । उस दिन प्रयाग जी उनसे मिलने हॉस्टल आए थे, हॉस्टल के विज़िटिंग आवर्स खत्म हो चुके थे । रविवार का दिन था, चारों ओर सुनसान सा दिखा, कोई दिखाई नहीं दिया। प्रयाग जी बस इस प्रतीक्षा में थे कि कोई दिखाई दे तो बहन को संदेश भर दे दिया जाए कि वे बाहर आए थे। संयोग अकस्मात ही होते है। संयोग से, सामने जीने से उतरती एक किशोरी दिखाई दी। बस प्रयाग शुक्ल जी को बहन के लिए संदेशवाहक मिल गया। संदेशवाहक तो मिला ही, संदेशवाहक के साथ – साथ ही अपने जीवन का संवाहक भी मिल गया था उन्हें, ज्योति कौर अहलूवालिया के रूप में, हालाँकि तब वे यह नहीं जानते थे, यह उन्होंने बाद में जाना । ज्योति जी उनके जीवन में कैटेलिस्ट साबित हुईं । जिनके आगमन ने प्रयाग जी के भीतर की कला और साहित्य से जुड़ी क्रियाओं को तीव्र कर दिया । जिनके लिए वे कहते हैं कि मैं ज्योति के बिना अपना जीवन सोच भी नहीं सकता।
शुक्ल परिवार का बेटा अपने भविष्य को बनाने का प्रयास कर रहा था। लाड – प्यार से पली उस लड़की के प्रति वह आकृष्ट हो गया । लड़की ने भी उस आकर्षण की डोर का दूसरा सिरा हौले से, सहर्ष थाम लिया। लड़की एक पंजाबी सिख घराने से थी तो क्या । प्रेम तो हमेशा ही जातियों धर्मों को धता बताता रहा है । यहाँ भी कोई नई बात थोड़े ही थी ।
विवाह से पूर्व शुक्ल जी ज्योति जी को एक बार , दिल्ली वहाँ लाए, जिस जगह वे रहते थे । वे यह दिखाना चाहते थे कि वे किस तरह रहते हैं ताकि बाद में सम्पन्न घराने से आई लड़की को कोई शिकवा – शिकायत ना हो । उन्होंने ज्योति जी को अपना वह कमरा दिखा दिया, जहाँ वे रहते थे। वह एक छोटा सा कमरा था । सम्पत्ति के नाम पर, कुछ किताबें, खाने की एक प्लेट, एक कटोरी, एक गिलास और एक जग था उनके पास, उस वक्त के लिए यह मिल्कियत थोड़ी तो नहीं थी । टीवी फ्रिज के साथ एक भव्य घर और संपन्न परिवार में पली ज्योति जी को भी उस समय यह मिल्कियत काफ़ी लगी । इसे देखकर भी उनकी हाँ ही थी ।1967 ईसवी में दोनों का विवाह हो गया। ज्योति जी उस समय भूगोल में एम ए कर रही थीं, और अपने कॉलेज यूनियन की सेक्रेटरी थी।वे द्वितीय वर्ष नहीं कर पाई और विवाह हो गया। प्रयाग शुक्ल जी कहते हैं कि जो लड़की घनी सुख – सुविधा में रहती थी। उसे मैंने लाकर फर्श पर सुला दिया।फर्श पर सोने के बाद भी उसने कभी कोई शिकायत नहीं की, कभी किसी कमी की तरफ ध्यान नहीं दिया।
उस दिन अभाव से आरंभ हुआ जीवन, ज्योति जी की सूझ – बूझ, धैर्य और साहस से धीरे – धीरे समर्थ होता गया। घर सुख – सुविधाओं और दो प्यारी – प्यारी बेटियों अंकिता शुक्ल और वर्षिता शुक्ल से आबाद हो गया। किसी अभाव को ज्योति जी ने कभी अभाव नहीं कहा और ना ही जीवन के उस अभावों से भरे टुकड़े को कभी संघर्ष के दिनों का नाम ही दिया ? उस छोटे से घर में भी उन्होंने बड़े से बड़े नामी – गिरामी लेखकों, कलाकारों, संगीतज्ञों आदि का सत्कार किया । भोजन की व्यवस्थाएँ कीं और कभी यह नहीं लगने दिया कि घर छोटा है और साधन सीमित । प्रयाग शुक्ल जी बताते हैं कि उनके घर में बहुत सारे मेहमान लगातार आते रहे हैं।
चाहे वो , फणीश्वरनाथ रेणु हों, बासु भट्टाचार्य नामवर सिंह हों या जे .स्वामीनाथन, ब . ब. कारन्त ,अशोक वाजपेयी दिनेश ठाकुर हों, पुष्पेश पंत हों, अर्पिता सिंह हों, या मंजीत बाबा हों, सूची लम्बी है, लोग उनके घर निरंतर आते रहे तब जब घर छोटा सा था ।उन सबका आतिथ्य और उनसे मैत्री रही ज्योति जी की । चाहे फनीश्वर नाथ रेणु जी के लिए बंगाली भोजन बनाना हो या किसी और के लिए पंजाबी भोजन, वे हमेशा ही तत्पर रही हैं । कृष्णा सोबती जी और उषा गांगुली जी से ज्योति जी की बहुत पक्की दोस्त थी। उनके जाने ने उन्हें काफ़ी दुख दिया। यूँ तो मैत्री उनकी ऑक्सफ़ोर्ड यूनिवर्सिटी में ब्रिटिश पेंटर हेलेन गेलली से आज भी है । आज भी उनके पत्र ज्योति जी के नाम आते हैं । प्रसिद्ध जर्मन कवि माइकल आगस्टिन भी प्रयाग शुक्ल जी के साथ – साथ उनके भी अच्छे मित्र रहे हैं । वे हमेशा शुक्ल जी के निर्णयों को दृढ़ बनाती रही हैं, चाहे वह रुपयों की ज़रूरत के समय हिंदी अकादमी से मिलने वाले पुरस्कार और 20,000 रुपयों की बड़ी रक़म (उस समय) का लौटाना हो या फिर कोई और निर्णय ।
ज्योति जी का भूगोल विषय बहुत अच्छा है । जब गूगल नहीं था तब भी वे शुक्ल जी की यात्राओं को लेकर गूगल की भूमिका बख़ूबी निभाती रही हैं । उनकी शांतिनिकेतन जाकर रहने की चाह तो पूरी नहीं हो पाई पर, वे विवाह से पूर्व कलकत्ता के पाड़ा में लड़के – लड़कियों के साथ मिलकर बंगाली भाषा में नाटक किया करती थीं । उन्हें रविंद्र नाथ टैगौर के नाटक “डाकघर” के संवाद अभी तक याद हैं । उनकी संगीत और कलाओं में गहरी रुचि ने प्रयाग जी की रचनात्मकता को बहुत बल दिया है, शुक्ल जी की रचनाओं पर सबसे पहली प्रतिक्रिया वे ही देती हैं, प्रयाग जी स्वयं को उनके प्रति कृतज्ञ मानते हैं और उनके बिना वे जीवन की कल्पना नहीं करते, ऐसा प्रयाग जी कहते हैं ।
संगीत नाटक अकादमी की पत्रिका का नाम रखना था तो भी उन्हीं का दिमाग़ काम आया । 30-40 नामों की सूची रद्द कर दी गई कोई नाम पसंद आ ही नहीं रहा था तब ज्योति जी ने ही सुझाया “संगना” । उन्होंने सुझाया इसमें क्या है संगीत का “संग” ले लो और नाटक का “ना” ले लो, हो गया नाम “संगना” । तत्कालीन संगीत नाटक अकादमी की चेयरपर्सन रही लीला सैमसन जी को एक बार में ही यह नाम भा गया ।बोलीं, यह हुआ ना नाम ।
ज्योति जी ही थीं जिन्होंने दिनमान से नवभारत में आए शुक्ल जी को भारी – भरकम हिंदी भाषा त्याग कर जनसाधारण की समझ में आने वाली भाषा के प्रयोग की सलाह दी । शुक्ल जी की हज़ारों – हज़ार पुस्तकें और उनके कैटलौग व्यवस्थित करती रही हैं वे हमेशा । दुर्भाग्यवश शुक्ल दम्पति ने अपनी छोटी बेटी को खो दिया । अब ज्योति जी में वैसी ऊर्जा और लगन नहीं बची यही कारण है कि अब शुक्ल जी को किताबें ढूँढे नहीं मिलतीं ।ज्योति जी आजतक बड़ी से बड़ी आवश्यकता होने पर भी शुक्ल जी के चार पेज नियमित लेखन के समय उन्हें डिस्टर्ब नहीं करतीं ।
वे एक सुग्रहणी बनी, जो आज 80 वसंतों को लांघकर भी अपने पति के साथ उसी तरह खड़ी हैं जिस तरह 1967 के उस पहले दिन खड़ी थीं जब वे विवाह होकर उनके साथ चली आई थीं ।
प्रयाग शुक्ल जी कहते हैं कि वे बहुत साहसी और जुझारू स्त्री हैं । इसका उदाहरण भी है ।शुक्ल जी चार माह के अमरीका प्रवास में थे । यह 1984 का दुर्भाग्य पूर्ण वर्ष था जब देश की पहली महिला प्रधानमंत्री श्रीमती इंदिरा गांघी की हत्या कर दी गई । हत्यारा, सिख धर्मी था । इंदिरा गाँधी के समर्थकों और दिल्ली की जनता में सिखों के ख़िलाफ़ भयानक क्रोध जन्मा । एक सिख की करनी ने ना जाने कितने निर्दोष सिखों की आहुती ले ली । ज्योति जी भी एक सिख परिवार से हैं । कई लोगों ने उन्हें डराया भी, कहीं दूसरी सुरक्षित जगह चले जाने की सलाह भी दी, पर वे साहस पूर्वक दोनों बेटियों को साथ लिए अपने घर में रहती रहीं । अमरीका में रह रहे अपने पति प्रयाग शुक्ल जी को उन्होंने कभी अपना कोई डर या अपनी कोई चिंता – परेशानी नहीं बताई । मंशा यही थी कि वे परदेस में परेशान ना हों और अपना कार्य शांत चित्त से करते रहें । उन्होंने अकेले अपने दम पर दोनों बेटियों को पाला और उन्हें उच्च शिक्षा दिलाई और अनेक कलाओं में प्रवीण किया । बेटियों के बड़े होने के बाद ज्योति जी भ्रमण में सदा शुक्ल जी का साथ निभाती रही हैं । इस छोटे से आलेख में ज्योति जी की तमाम अनजानी उपलब्धियों को समग्र रूप में समेट पाना बहुत कठिन है । शेष कभी फिर ।
हिंदी का विशाल पाठक वर्ग इन कैटेलिस्ट बनी पत्नियों का ऋणी रहेगा, जिन्होंने अपनी पहचान की आहुती देकर बड़े – बड़े लेखकों को घर की ज़िम्मेदारियों से मुक्त रखा ताकि वे एक चित्त होकर लेखन कर सके, बड़े बन सके, और पाठकों को अच्छे से अच्छी सामग्री पढ़ने को मिल सकी । सभी पाठकों की ओर से उन्हें मेरा सादर नमन ।
(ज्योति कौर अहलूवालिया, शुक्ल जी के विषय में यह सारी जानकारी स्वयं आदरणीय प्रयाग शुक्ल जी से उपलब्ध हुई है।)
निर्देश निधि
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