Tuesday, May 14, 2024
Homeलेखकों की पत्नियां"क्या आप इंदिरा मिरीकर उर्फ शांता मुक्तिबोध को जानते हैं?"

“क्या आप इंदिरा मिरीकर उर्फ शांता मुक्तिबोध को जानते हैं?”

हिंदी कविता में निराला के बाद दूसरे बड़े प्रतीक मुक्तिबोध रहे। उनका जीवन और रचना कर्म आत्मसंघर्ष और सामाजिक संघर्ष का एक दस्तावेज हैं। उनकी लम्बी कविता अंधेरे में अपने समय का ही नहीं बल्कि भारतीय यथार्थ का भी एक ऐतिहासिक रूपक बन गया है। हम मुक्तिबोध को तो बहुत जानते हैं पर उस महान शख्स की पत्नी को बहुत कम जानते हैं।
लेखिकाओं की पत्नी की शृंखला में इस बार पढ़िए शांता मुक्तिबोध के बारे में। चर्चित कथाकार उर्मिला शुक्ल ने बहुत ही लगन से लिखा है तो पढ़िए आज यह टिप्पणी —
“अँधेरे में रौशनी भरती – शांता मुक्तिबोध”
………………….

– उर्मिला शुक्ल (रायपुर छत्तीसगढ़)
यह एक बहुचर्चित कथन है कि एक सफल पुरुष के पीछे एक स्त्री होती है| वह स्त्री जो उस पुरुष के लिए अपना सब कुछ छोड़ देती है| अपने आपको और अपने नाम तक को बदल देती है| ऐसी ही एक स्त्री का नाम है शांता मुक्तिबोध| विवाह से पहले शांता मुक्तिबोध का नाम था इंदिरा मिरीकर | महू (वर्तमान मध्य प्रदेश) में शिलेदार के पद पर कार्यरत माधव राव मिरीकर के घर जन्म लेने वाली इंदिरा मिरीकर का जन्म कब हुआ| उनके जन्म वर्ष और जन्मतिथि की कोई जानकारी नहीं मिलती| उनके बेटे दिवाकर मुक्तिबोध ने बताया कि उनकी माता जी का जन्म कब हुआ था यह उन्हें खुद भी मालूम नहीं था | सो वे जब भी पूछते, तो वे कहतीं सन 39 में जब उनका विवाह हुआ ,तब वे पन्द्रह – सोलह साल की थीं और मुक्तिबोध जी इक्कीस – बाईस के | इस तरह हिसाब लगाने पर उनकी उम्र मुक्तिबोध जी से करीब छह वर्ष छोटी ठहरती है|
गजानन माधव मुक्तिबोध जी का जन्म वर्ष 13 नवंबर 1917 है| इस हिसाब से शांता जी का जन्म वर्ष 1923 माना जा सकता है; मगर इससे जन्म तिथि तो नहीं ही जानी जा सकती| ऐसा कोई भी दस्तावेज उपलब्ध नहीं है, जिससे उनकी जन्म तिथि, जन्म माह और वर्ष का सही – पता लगाया जा सके| उनके बेटे दिवाकर मुक्तिबोध मानते हैं कि अब उन्हें अफ़सोस होता है कि माँ के जीवित रहते हमने यह सब क्यों नहीं पूछा| दरअसल जिस जमाने की यह बात है, उस जमाने में स्त्री की सारी पहचान मायके में ही छूट जाती थी| पति का नाम और उपनाम ही स्त्री की पहचान बन जाते थे| मराठी परिवार में तो एक ऐसा रिवाज भी रहा है ,जिसके चलते स्त्री के मायके नाम भी बदल दिया जाता है| रिवाज के अनुसार यह काम पति के द्वारा ही किया जाता है| सो गजानन माधव मुक्तिबोध ने भी इंदिरा मिरीकर की जगह उनका नाम शांता बाई रख दिया गया और वे शांता बाई मुक्तिबोध हो गयीं|
इंदिरा मिरीकर ने गजानन माधव मुक्तिबोध से प्रेम विवाह किया था| सो उन्हें दोनों परिवारों के विरोध का सामना भी करना पड़ा| ससुराल पक्ष ने तो बाद में उन्हें स्वीकार भी लिया ;मगर पिता ने नहीं स्वीकार किया| प्रेम विवाह तो आज भी बहुत सहज स्वीकार्य नहीं है| फिर उस जमाने में ? सो कितना कुछ सहना पड़ा होगा इसकी कल्पना की जा सकती है| शायद एक कारण यह भी है कि आज शांता मुक्तिबोध के बचपन की कोई भी जानकारी उपलब्ध नहीं है|
मुक्तिबोध की सहधर्मिणी होकर उनका साथ निभाते चले जाना आसान नहीं था; मगर शांता जी ने इसे बखूबी निभाया| मुक्तिबोध के जीवन में कभी स्थायित्व रहा नहीं| शिक्षकीय कर्म के चलते विविध विद्यालयों से होते हुए, आकाशवाणी की नौकरी| फिर पत्रकारिता से होकर दिग्विजय महाविद्यालय तक का कठिनाई भरा सफर| ऐसे में मुक्तिबोध का संबल बना रहना आसान तो नहीं रहा होगा; मगर शांता जी अंत तक उनकी संबल बनी रहीं| उज्जैन, इंदौर, शुजालपुर, जबलपुर ,नागपुर और अंत में राजनांदगांव| अपनी गृहस्थी का बोझ उठाये वे मुक्तिबोध के साथ भटकती रहीं| कभी अभावों का रोना नहीं रोया| कभी कोई शिकायत नहीं की| जब जितनी चादर मिली उतना ही पैर फैलाया| शांता जी बहुत पढ़ी –लिखी नहीं थीं | उस जमाने में लडकियों को बहुत पढ़ाने का चलन भी नहीं था| सो पाँचवी तक की शिक्षा मिली थी उन्हें| साहित्य में बहुत रुचि नहीं थी; मगर मुक्तिबोध जब कोई नयी कविता लिखते और कोई और कवि मित्र सुनने को उपलब्ध नहीं होता, तो वे जोर – जोर से उसका पाठ करते| इस तरह वे उनकी कविता की पहली श्रोता हो जाया करतीं| पता नहीं मुक्तिबोध की कविताएँ वे किस रूप में और कितना समझ पाती रही होंगी। मुक्तिबोध जी के साथ पर्यटन के उद्देश्य से कहीं जाने का अवसर उन्हें कभी नहीं मिला | पर मुक्तिबोध जी के साथ, उनके साहित्यिक मित्रों नरेश मेहता, भीष्म आर्य, शैलेन्द्र कुमार और विद्रोही जी के घर जाया करती थीं| उन्हें मनोरंजन के बहुत अवसर कभी नहीं मिले| मनोरंजन के नाम पर कभी कभार फिल्म देखने जाने का अवसर जरूर मिल जाता था| शांता जी ने जीवन में जो कुछ मिला उसे सहज ही अपनाया| मुक्तिबोध जी के मित्रों की नित्य होने साहित्यिक गोष्ठियों में चाय नाश्ते की व्यवस्था की महती जिम्मेदारी के बीच से जो समय बचता, उसे वे आस पड़ोस की स्त्रियों के साथ बिताया करतीं| ये आस – पड़ोस की स्त्रियाँ उनकी सखियाँ हुआ करती थीं| इनके अलावा मुक्तिबोध के घनिष्ठ मित्र नेमीचंद जैन की पत्नी, रेखा जैन से भी उनकी मित्रता थी | नेमीचंद जी जब नाट्य मंचन के लिए छत्तीसगढ़ आते रेखा जी शांता जी के घर ही ठहरतीं| दोनों सहेलियाँ खूब बातें करतीं| यह मित्रता शुजालपुर के जमाने की थी, जो मुक्तिबोध जी के न रहने के बाद भी चलती रही| रेखा जी जब बीमार हुईं, शांता जी उनसे मिलने दिल्ली जाना चाहती थीं; मगर जा नहीं पायीं| अपनी प्रिय सहेली से आखिरी बार न मिल पाने का बहुत अफ़सोस रहा उन्हें|
मुक्तिबोध जी को राजनांदगांव में महाविद्यालय में प्राध्यापक का पद मिला, तो लगा अब जीवन में कुछ ठहराव आएगा; मगर नियति ? नियति ने ठहराव के पल कम कितने कम रखे हैं ! यह किसी को कहाँ मालूम था| पति की मृत्यु के बाद वे टूटीं तो जरूर; मगर बिखरी नहीं| अपने को सहेजा और बच्चों की परवरिश में जुट गयीं| मुक्तिबोध जी को अपनी यादों में बसाये अपने पाँच बच्चों रमेश, उषा, दिवाकर, दिलीप और गिरीश के साथ वे जीवन पथ पर चलती रहीं| उन्हें इस बात का ताउम्र अफ़सोस रहा कि मुक्तिबोध समय से बहुत पहले चले गये| अगर वे होते तो और बहुत कुछ लिखते| उनके पुत्र दिवाकर मुक्तिबोध मानते हैं कि उनकी माँ शांता मुक्तिबोध को उनका पूरा आकाश नहीं मिल पाया| जीवन की अपनी व्यस्ताओं के चलते वे भी माँ के लिए वैसा समय नहीं निकाल पाए जैसा निकालना चाहिए था | इसलिए उनको अपनी माँ के विषय बहुत कम जानकारी है | सो शांता जी मुक्तिबोध जी के विषय में उतनी जानकारी नहीं मिलती जितनी मिलनी चाहिए; मगर जितनी भी मिलती है उसमें वे एक पत्नी और माँ की भूमिका के साथ एक लेखक की पत्नी का दातित्व निभाती नजर आती हैं| लेखक की पत्नी का दायित्व साधारण इंसान की पत्नियों से बहुत अलग होता है| फिर मुक्तिबोध जैसे लेखक, जिनका सारा जीवन नौकरी के लिए भटकते बीता| कविता की तरह वे अपने जीवन में भी न जाने कितने – कितने अंधेरों से जूझते रहे; मगर मुक्तिबोध इन अंधेरों से घबराकर पीछे नहीं लौटे | क्योंकि उन्हें शांता जी का साथ मिला ,जो उन अंधेरों में हमेशा अपने स्नेह की रौशनी भरती रहीं |
(नोट – यह लेख मुक्तिबोध के संकलन की भूमिकाओं और उनके पुत्र दिवाकर मुक्तिबोध जी से बातचीत के आधार पर लिखा गया है| )
RELATED ARTICLES

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here

Most Popular

error: Content is protected !!